तराई के संस्थापक पंडित राम सुमेर शुक्ल की 109वीं जयंती पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित
रुद्रपुर में डीडी चौक के समीप प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए
रुद्रपुर। महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और तराई क्षेत्र के संस्थापक पंडित राम सुमेर शुक्ल की 109वीं जयंती पर उनके योगदान को नमन करते हुए विभिन्न समारोह आयोजित किए गए। डीडी चौक के समीप पंडित राम सुमेर शुक्ल जी की प्रतिमा पर जिलाधिकारी उदयराज सिंह,पूर्व विधायक राजेश शुक्ला,पूर्व मेयर रामपाल, पंडित राम सुमेर शुक्ल मेमोरियल फाउंडेशन ट्रस्ट के संरक्षक दिनेश शुक्ला,एडीएम पंकज उपाध्याय और नगर आयुक्त नरेश दुर्गापाल सहित सैकड़ों लोगों ने उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। पंडित राम सुमेर शुक्ल राजकीय मेडिकल कालेज रुद्रपुर में जयंती के अवसर पर प्राचार्य डॉ केदार शाही व पूर्व विधायक राजेश शुक्ला ने कॉलेज स्टाफ और कार्यकर्ताओं के साथ माल्यार्पण कर उनके योगदान को नमन किया। इधर पंडित राम सुमेर शुक्ल राजकीय बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय रामनगर में धूमधाम से पंडित राम सुमेर शुक्ल की जयंती मनाई गई जहां विद्यालय के छात्राओं ने विभिन्न संस्कृति कार्यक्रम प्रस्तुत किया, कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि पूर्व विधायक राजेश शुक्ला ने पंडित शुक्ल के चित्र पर माल्यार्पण कर पुष्पांजलि कर किया।रुद्रपुर डीडी चौक पर प्रतिमा स्थल पर माल्यार्पण करने के बाद जिलाधिकारी उदयराज सिंह ने बताया कि पंडित शुक्ल का जन्म 28 नवंबर 1915 को ग्राम भेड़ी शुक्ल, तहसील रुद्रपुर, जिला देवरिया (तत्कालीन गोरखपुर), उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा रंगून के कैंब्रिज विद्यालय में हुई। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी की।
पंडित राम सुमेर शुक्ल जी 1936 में मात्र 21 वर्ष की आयु में लाहौर अधिवेशन में द्विराष्ट्रवाद का विरोध कर राष्ट्रीय पहचान बना चुके थे। गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने वकालत न करने का निश्चय किया और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई। अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में उन्होंने तीन बार जेल यात्राएं कीं और घोर यातनाएं सही।
1943 में दिल्ली में हुए छात्र एवं युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। पंडित नेहरू ने उद्घाटित इस अधिवेशन में शुक्ल जी ने छात्रों को स्वतंत्रता आंदोलन में संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आजादी के बाद उन्हें तराई कॉलोनाइजेशन का दायित्व सौंपा गया, जहां उन्होंने विस्थापित शरणार्थियों और स्वतंत्रता सेनानियों के पुनर्वास में अप्रतिम योगदान दिया। उन्होंने रुद्रपुर को एक विकसित शहर बनाने की नींव रखी।उनकी अमूल्य सेवाओं और संघर्ष को याद करते हुए उत्तराखंड सरकार ने उनके सम्मान में रुद्रपुर में उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित की। पंडित शुक्ल का निधन 4 दिसंबर 1978 को हुआ, लेकिन उनकी देशभक्ति और सेवा का उदाहरण आज भी प्रेरणादायक है।कार्यक्रम में भारत भूषण चुघ, डाक्टर केदार शाही,मनमोहन सक्सेना, धर्मराज जायसवाल, आशीष तिवारी, राजेश तिवारी,अजय तिवारी, रामू चतुर्वेदी,बंटी खुराना, सुरेंद्र चौधरी, विपिन मिश्रा,गोल्डी गोरया,अजित पाठक,अनिल चौहान,राकेश सिंह, अखिलेश यादव, सुशील यादव, नंदकिशोर, जय नारायण, दीपक मिश्रा, रविकांत वर्मा, जसवीर सिंह, आलोक राय,शंकर विश्वास, जितेंद्र गौतम,अमर खान,अमर सिंह,सुनील रोहिल्ला, सुभाष गुप्ता,रामू जोशी,धनुज यादव, महेंद्र वाल्मीकि,अंकुर उपाध्याय, चंदन जायसवाल,राजेश कोली,अरुण द्विवेदी, दीपक मिश्रा,अशोक चौधरी, मनोज ठाकुर, शिवम शर्मा, शिवम ओझा,अविनाश चौधरी, नितिन कुटेला,अमरकांत,विपिन मिश्रा,कुलदीप बग्गा,नारायण पाठक, बलराज सिंह आदि मौजूद रहे।